Poetry
1.
सुबह सुबह हम बच्चे मिलकर शीश झुकाते हैं॥
शुद्ध हृदय से ईश्वर के चरणों में आते हैं॥
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ऐसे हों संस्कार हमारे गुरुओं का सम्मान करें
धीर वीर विद्वान बनें कि सब हमपे अभिमान करें
मातु पिता के वंदन का वरदान पाते हैं॥
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वेद ग्रन्थ के मंत्र सदा से शक्ति स्रोत हमारे हैं
प्रेम क्षमा ओ दया धर्म सत् ऋषियों ने उच्चारे हैं
हम भक्ति की शक्ति का गुणगान गाते हैं॥
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जननी जन्मभूमि भारत का सदा ही मान बढाएं हम
बल बुद्धि विज्ञान के बल पर जग को राह दिखाएं हम
स्वर्गानन्द अखंड सनातन जोति जलाते हैं॥
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2.
मन की मैल को, करूणा जल से
हे परमात्मा साफ करो।
अपराध हमारे माफ करो।।
हम दोषी अधोगामी हैं
पतित मुरख खल कामी हैं
दैविक शुद्ध संस्कार भरो।
अपराध हमारे माफ करो।।
परम दयालु हो भगवान
दया के सागर कृपानिधान
सब संकट संताप हरो।
अपराध हमारे माफ करो।।
सतपथ से हम भटके नहीं
मन मिथ्या में अटके नहीं
चित में अचर तुम्हीं विचरो।
अपराध हमारे माफ करो।।
स्वर्गानन्द की है अर्जी
हमपे चले सत् की मर्जी
अंतिम क्षण तक बांह धरो।
अपराध हमारे माफ करो।।
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3.
इस सृष्टि में सदा सत्य का शासन रहेगा
सनातन रहा है, सनातन रहेगा॥
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सत्य सनातन की शक्ति ही सृष्टि का आधार है
सत्य सूक्ष्म है, सत्य वेयापक, सत्य मूल है सार है
अटल सत्य का युगों युगों तक सिंहासन रहेगा॥
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राम कृष्ण हों नानक हों या तुलसीदास कबीर हों
गौतम बुद्ध ओ महावीर या कोई संत फकीर हों
सत्य की महिमा का हर मुख पे गायन रहेगा॥
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कितने राजा साहूकार पंडित आएंगे जाएंगे
अपने धन बल बुद्धि का मिथ्या अभिमान दिखाएंगे
सदा शेष न यहाँ किसी का नर्तन रहेगा॥
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सत अन्वेषण सत् का दर्शन सत साधना जो करता है
सत किरपा गुरूदेव की पाके वो ही प्राणी तरता है
सत्य शरण में स्वर्गानन्द यह जीवन रहेगा॥
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4.
सत् लहरा (भोजपुरी)
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सुनर सुनर पांचऽ गो सहेलिया नुं जी
हमके लिहली पटाय,
मारी मारी मंतरऽ टोनवां नुं जी
दिहली सुगना बनाय॥
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पारापारी कबो एकऽ संगवां नुं जी
देली झंपिया ओढ़ाय,
झंपिये में चानावा के दानावा नुं जी
हम ओही में भोराय॥
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एगो खियावे खलऽ खोवावा नुं जी
दूजी सूंघनी सूंघाय,
तीसरी सुनावे मद रागावा नुं जी
चउथी चकमक देखाय॥
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पांचवी के चीकनऽ चुमुकवा नुं जी
घींचे धीरे से छुवाय,
स्वर्गानन्द बंद सब केंवड़िया नुं जी
सदगुरू करिहें उपाय॥
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5.
(भोजपुरी)
दुनियाभर के कुंडी अंटकल बाटे मुलाधार में
हो जोगिया,
कय जुग लागी सहस्रार में॥ हो जोगिया ॥
उपर मूंकी बढ़ऽ ना तऽ गीरबऽ धबाक् से
घिर्रनी ना रूकी कबो कोंहरा के चाक से
स्वाधिष्ठान सवाद साधऽ ब्रम्ह जयकार में
हो जोगिया,
काथी घोरल बा कपार में ॥ हो जोगिया ॥
कहिया ले मणिपुर में हेलबऽ हो जोगी
अनाहत में ॐ बड़ा बाटे उपयोगी
कंठ में बिशुद्धि गूंथऽ सुखमन तार में
हो जोगिया,
सोरह दल के सिंगार में ॥ हो जोगिया ॥
अंखिया ना मूंदबऽ तऽ खुली कइसे आँख हो
अगेयां में स्वर्गानन्द उड़े लागी पांख हो
लय होई जाई मय चीज ओंकार में
हो जोगिया,
जनि बाझऽ संसार में ॥ हो जोगिया ॥
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6.
ओ राही सम्हल जाना जीवन के सफर में ॥
अवसर को मत गंवाना तुम इधर उधर में ॥
इस राह में कदम कदम पे धोखा है
आसां है भटक जाना, क्या भरोसा है
होगा बहुत पछताना जब जाओगे घर में ॥
ओ राही सम्हल जाना जीवन के सफर में ॥
दुनिया की मौज मस्तियाँ आबाद रखना
लेकिन जरा सी बात मेरी याद रखना
इस तन का है ठिकाना समसान कबर में ॥
ओ राही सम्हल जाना जीवन के सफर में ॥
नेकी भलाई बंदगी जीवन का सार है
सदमार्ग जिसने साध लिया बेड़ा पार है
है स्वर्गानन्द जाना सतलोक शिखर में ॥
ओ राही सम्हल जाना जीवन के सफर में ॥
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7.
(भोजपुरी)
जोरि जोरि गीतिया बनाइब हो
गुरूजी के अपना सुनाइब हो ॥
सत् के राग में सुरति सबदवा
गगनमंडल में गूंजी अनहदवा
संसिया के सरगम उठाइब हो
प्रभुजी के अपना लोभाइब हो ॥
साधि के समाधि में भीतरा बहरा
परलय लय पर लहरी लहरा
हरि हरमुनिया बजाइब हो
सुफल जिनिगिया बनाइब हो ॥
मूलऽ आधार से अगेयां उपरा
स्वर्गानन्द सहस्रार के छप्परा
सास्वत तत् में समाइब हो
सगरो हमीं मुस्काइब हो ॥
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8.
मेरे प्रभु के चरण प्यारे प्यारे
गुरुदेव के चरण प्यारे प्यारे
अब मुझे जगत से क्या लेना, क्या लेना ॥
मेरे सतगुरु चरणों मे तेरी, सदा बहती है अमृत की धारा
चरणामृत जो पाए जाए, भव सागर से वो पाये किनारा
बावरा हो गया मन, हरदम गाये गुरु भजन
अब दुनिया की खटपट से क्या लेना, क्या लेना ॥
मेरे प्रभु के चरण प्यारे प्यारे …
मोह माया के बन्धन में, जकड़े हैं सारे प्राणी,
सारे बन्धन झट कट जाए, जब आत्मा सुने सत वाणी
सर पे सतगुरु का जो हाथ,
फिर तो डरने की क्या बात
किसी आंधी आफत से क्या लेना, क्या लेना ॥
मेरे प्रभु के चरण प्यारे प्यारे …
मैं पहले दर दर भटका, कहीं भी ना सुकून मिला मन को
सत किरपा ने यूं बदला, क्षण भर में ही मेरे जीवन को
गुरुवर मिल गए स्वर्गानन्द
मुझको आनंद ही आनंद
अब किसी और चौखट से क्या लेना, क्या लेना ॥
मेरे प्रभु के चरण प्यारे प्यारे …
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9.
बारिश में जब पत्ते सारे हिलते हैं
मन के अंदर फूल कितने खिलते हैं
मस्त हवाएं कहां से आएं
मुझको पूरा पागल कर जाए रे,
मन हरि चरणों में झूमा झूमा जाए रे ॥
मन गुरू चरणों में झूमा झूमा जाए रे ॥
जयजय जयजयहो जयजय जयजयहो
जयजय जयजयहो जयजय जयजयहो
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10.
जय जय जय हो,
जय जय जय हो ॥
पाप बीमारी भय का क्षय हो ॥
शुभ कर्मों का नित संचय हो ॥
जप तप ध्यान हरेक समय हो ॥
गुरू चरणों में मन तन्मय हो ॥
स्वर्गानन्द समाधि विलय हो ॥